
एक तरह से पटाक्षेप हो गया । अब 29 की सुबह एक बैठक है जिसमें आज जो परिवर्तन हम सबों ने मंजूर किए हैं उन परिवर्तनों के साथ बिल को अल्पसंख्यक विभाग और विधि मंत्रालय रखेगा।
संयुक्त संसदीय समिति द्वारा पारित सभी परिवर्तन सरकार के लिए बाध्यकारी होते हैं और उन परिवर्तनों के साथ ही लोकसभा में जाना पड़ता है। फिर लोकसभा उसमें कुछ परिवर्तन करना चाहे तो कर सकती है।
आज जो संशोधन हमने किए हैं उनको 29 जनवरी को पुनः एक बार जांच कर लोकसभा अध्यक्ष के हवाले कर दिया जाएगा। कानून में काफी संशोधन किया गया हैं। ये संशोधन अल्पसंख्यक समाज के लिए , वक्फ चलाने वालों के लिए और देश के लिए ,बहुत ही बेहतरीन नज़ीर पेश करेगा।
विरोधी दलों के सांसदों पर आश्चर्य होता है कि इतने अच्छे संशोधनों पर भी उनका विरोध था जबकि काफी बातें जो गवाहों ने रखी थीं उनको अब कानून में ले लिया गया है। जब यह कानून सभा पटल पर रखा जाएगा तो जनता को भी आश्चर्य होगा की विरोधी दल किस तरह से उन कानूनी संशोधनों का भी विरोध कर रहे थे जिनको अल्पसंख्यक समाज के ही विभिन्न गवाहों ने रखा था।
मैं लगभग 14 संयुक्त संसदीय समितियां का सदस्य रह चुका हूं और दो समिति का अध्यक्ष भी था। परंतु कभी भी इतनी मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ी ।
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